अपने दिल को कुछ इस तरह से बहलाता हू,
'दोस्त' कह कर अपने ही अक्स से लिपट जाता हू !
भीग जातें है जब यह पलके किसी को याद कर के,
ऐसे मैं उन्हें निचोड़ कर आँगन में सूखने के लिए टांग आता हू!
शाम होते होते फिर से उन्हें उठा के तह कर लेता हू,
तकिये तले समेट के फिर थोडा सो जाता हू!
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