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Sunday, February 5



अपने दिल को कुछ इस तरह से बहलाता हू,
'दोस्त' कह कर अपने ही अक्स से लिपट जाता हू !

भीग जातें है जब यह पलके किसी को याद कर के,
ऐसे मैं उन्हें निचोड़ कर आँगन में सूखने के लिए टांग आता हू!

शाम होते होते फिर से उन्हें उठा के तह कर लेता हू,
तकिये तले समेट के फिर थोडा सो जाता हू!


Saturday, February 4

मेरी अनगिनत ख्वाहिशे


उफ़ !! ये मेरी अनगिनत ख्वाहिशे ,
करू गौर तो किन किन पर ?
दू तवज्जो तो में किस को ?

की एक तामीर नहीं हुई,
और अगली खड़ी है सिरहाने पर,
एक रूठी हुई है ,
और अगली अडी है मनाने में !

न जाने क्यों इन्हें लगता है की,
मैं एक जरिया हू इनके अंजाम का ,
न जाने क्यों सोचती है की ,
में सुबह हू इनके शाम का !



अरे जरा रहम तो करो की,
में राही हू मेरा कोई मकाम नहीं!
एक छत सी तो है पर ,
रात गुजारने को कोई मकान नहीं !

दिल में लगी आग से ,
आँखों की नमी जलती रही ,
इन ख्वहिशो के ताने बने में अब ,
मुझे अपनी ही कमी खलनी लगी !





Thursday, February 2

अकेला !





चला था इस दुनिया की भीड़ मैं साथ ,
साहिल पे आकर अकेला रह गया !
साथ तो चले थे रंजो ग़म के साथी,
जब ग़म मयस्सर हुआ तो तनहा सह गए !
आ फंसे जब हम जीवन के मझधार में ,
नैय्या तो साथ थी मांझी डुबो गया ! 


Tuesday, December 27

मेरी प्यारी ज़िंदगी

ट्राफिक से तेज़ चलती यह ज़िन्दगी,
हर मोड़ पे सिग्नल तोडती यह ज़िन्दगी ! 
कही रात के अंधेरो मैं रोशन यह ज़िन्दगी,
कही दिन के उजाले मैं दम तोडती यह ज़िन्दगी !

अमीरों के लिए शौक यह ज़िन्दगी,
गरीबो के लिए खौफ यह ज़िन्दगी ,
कही गरम रजाई मैं सोती ,मासूम सी यह ज़िन्दगी ,
कही ठण्ड मैं ठिठुरते , फूटपाथ मैं जागती यह ज़िन्दगी !

कोई हंस दे तो खिलखिलाती यह ज़िन्दगी,
मैं जरा सा रो दू तो मुझे चिढाती यह ज़िन्दगी ,
बीते कल को भुलाओ, तो पल पल याद दिलाती यह ज़िन्दगी ,
आये जो वह  कभी  ख्वाबो मैं, सुबह उसे भुलाए यह  ज़िन्दगी !

हर रोज़ नए पहेलियाँ  बुझाती यह ज़िन्दगी ,
मैं जितना सुलझाऊ ,उतनी ही उलझती यह ज़िन्दगी  !

Monday, September 26

बिटिया !


बिटिया सबसे अलग होती है,
मातृत्व का ही एक रूप होती है,
जिसने भी इन्हें अपनाया है,
जीवन में कितनी खुशियां पाया है !

बिटिया जब जब मुस्काती है,
बगिया में सौ फूल खिलते है,
पर जब भी वो रोती है,
संग उसके सारे मौसम रोते है !

बिटिया के हक में वैसे,
खुशिया कम ही आती है ,
भाई के लिए फिर भी वह,
अपनी जान लुटाती है !

बिटिया जब बड़ी हो जाती है, 
कितनी समझदार कहलाती है ,
घर को सजाने के लिए,
अपनी ही मुस्कान चुराती है !

कही किसी कोने में आज भी,
एक बिटिया ने जन्म लिया होगा,
आँख खुलने से पहले ही,
एक इंसान ने मार दिया होगा !

एक उम्मीद है एक दिन ,
में भी "बिटिया" धन कमाऊंगा ,
लाड प्यार से उसको अपनी,
पलकों पे बिठाऊंगा !

बिटिया की एक मुस्कान के लिए,
सारा जीवन लुटाऊंगा,
उसकी एक ख्वाइश के लिए,
सारी दुनिया से लड़ जाऊंगा !

एक ऐसे ही प्यारी बिटिया को,
मैंने भी कही से  जाना है,
मेरी छोटी छोटी खुशियों को,
एक बड़ा सा खज़ाना है !

यही सोच में रहता हु,
जाने कहा से वह आयी है,
नाम ना पूछो उस "बिटिया " का,
बाबा जिसके साईं है !

यू तो बिटिया अपने जीवन में,
सबको ही अपनाती है,
इतना सब है फिर भी क्यों,
पराया धन वह कहलाती है !